श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥ त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥ प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥ साधु संत के तुम रखवारे।। असुर निकन्दन राम दुलारे।। श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन https://shivchalisas.com